Brijeshbari Prasad Murder: 13 जून 1998 की शाम 5 बजे पटना का इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (IGIMS). राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के कद्दावर नेता और राबड़ी देवी सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बृजबिहारी प्रसाद अस्पताल में भर्ती थे. उनकी सुरक्षा में 22 कमांडो और बिहार पुलिस का कड़ा पहरा था. लेकिन शाम 5 बजे के करीब एक एंबेसडर कार और बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार पांच हथियारबंद लोग अस्पताल परिसर में घुसे. इनका नेतृत्व कर रहा था. उत्तर प्रदेश का कुख्यात डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला. जिसके पीछे थे सुधीर त्रिपाठी, अनुज प्रताप सिंह, मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी.
हमलावरों ने सीधे बृजबिहारी के वार्ड की ओर रुख किया. पलक झपकते ही AK-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई. गोलियों की तड़तड़ाहट से अस्पताल में हड़कंप मच गया. बृजबिहारी और उनके अंगरक्षक लक्ष्मेश्वर साहू को गोलियों से छलनी कर दिया गया. हमलावर बजरंगबली के नारे लगाते हुए गाड़ियों में सवार होकर फरार हो गए. हैरानी की बात यह थी कि इतने सशस्त्र हमले के बावजूद सुरक्षाकर्मियों ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. इस घटना ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की सियासत को हिलाकर रख दिया.
इस हत्याकांड की जड़ें बिहार के अंडरवर्ल्ड और सियासी गलियारों में गहरे धंसी थीं. बृजबिहारी प्रसाद पर गैंगस्टर छोटन शुक्ला (1994) और उनके भाई भुटकुन शुक्ला (1995) की हत्या का आरोप था. छोटन की हत्या 4 नवंबर 1994 को पटना में AK-47 से हुई थी. जिसमें उनके चार साथी भी मारे गए थे. इसके बाद भुटकुन ने गैंग की कमान संभाली लेकिन 3 दिसंबर 1995 को पुलिस की वर्दी में आए हमलावरों ने उनकी भी हत्या कर दी. इन हत्याओं के पीछे बृजबिहारी का हाथ माना गया.
छोटन और भुटकुन के छोटे भाई मुन्ना शुक्ला ने बदले की कसम खाई. उन्होंने जनेऊ हाथ में लेकर बृजबिहारी का सर्वनाश करने का प्रण लिया. मुन्ना ने मोकामा गैंग के सरगना सूरजभान सिंह और यूपी के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला से हाथ मिलाया. सूरजभान पर आरोप था कि उन्होंने बेऊर जेल से इस हत्या की साजिश रची थी.
श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी गैंग का शार्पशूटर, उस समय उत्तर भारत के अंडरवर्ल्ड में खौफ का पर्याय था. 11 जून 1998 को वह गोरखपुर से पटना पहुंचा. उसने ‘आज’ अखबार के दफ्तर में ऐलान किया कि पटना में दो दिन में कुछ बड़ा होगा. 13 जून को उसने अपने साथियों के साथ वारदात को अंजाम दिया. हत्या के बाद उसने फिर अखबार को फोन कर दावा किया. बृजबिहारी को इतनी गोलियां मारी हैं कि उसका शरीर में छेद ही छेद हो गया है. इस घटना ने श्रीप्रकाश को अंडरवर्ल्ड में और कुख्यात बना दिया.
सीबीआई जांच के अनुसार इस हत्या की साजिश पटना की बेऊर जेल में रची गई थी. जहां सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, लल्लन सिंह और राम निरंजन चौधरी बंद थे. बृजबिहारी ने कथित तौर पर सूरजभान की हत्या की साजिश रची थी. जिसके जवाब में सूरजभान ने श्रीप्रकाश को गुरु दक्षिणा के तौर पर बृजबिहारी को खत्म करने का आदेश दिया था. मुन्ना शुक्ला ने हथियारों की व्यवस्था की और श्रीप्रकाश को दिल्ली तक सुरक्षित पहुंचाने का इंतजाम किया.
बृजबिहारी प्रसाद बिहार के आदा गांव के एक साधारण परिवार से थे. उनके पिता राजपरिवार की संपत्तियों के केयरटेकर थे. पढ़ाई में तेज, बृजबिहारी ने मैट्रिक में टॉप किया और सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर PWD में इंजीनियर बने. लेकिन जातीय संघर्ष और दबंगों के दबाव ने उन्हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया. उन्होंने राजपूत समाज के युवाओं को जोड़ा और चंद्रशेखर की जनता दल में शामिल होकर 1990 में विधायक बने. लालू यादव के करीबी बनकर वह RJD के प्रभावशाली नेता बन गए.
हत्या के दो दिन बाद 15 जून 1998 को FIR दर्ज हुई. जिसमें सूरजभान, श्रीप्रकाश, मुन्ना, मंटू और अन्य को आरोपी बनाया गया. 1998 में ही श्रीप्रकाश, सुधीर त्रिपाठी और अनुज प्रताप सिंह यूपी पुलिस के एनकाउंटर में मारे गए. 2009 में निचली अदालत ने मुन्ना और मंटू सहित 8 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन 2014 में पटना हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया. बृजबिहारी की पत्नी रमा देवी और सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी.
छोटन शुक्ला की हत्या के बाद भुटकन शुक्ला केशरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे थे. उनके पीछे आनंद मोहन का समर्थन था. इस वजह से बृजबिहारी प्रसाद को लगा कि उनका दबदबा कमजोर पड़ सकता है. उन्होंने भुटकन शुक्ला को चुनाव में उतरने से रोकना चाहा लेकिन जब भुटकन नहीं माने, तो 3 दिसंबर 1994 को पुलिस की वर्दी में आए बदमाशों ने उनकी हत्या कर दी. इसके बाद आनंद मोहन के नेतृत्व में भुटकन शुक्ला की शवयात्रा पटना से वैशाली तक निकाली गई. जब यह यात्रा रास्ते में जा रही थी, तभी गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया ने मुजफ्फरपुर के एक गांव खबरा पहुंचे. जुलूस को रोकने की कोशिश जिलाधिकारी ने की. इससे गुस्साई भीड़ ने डीएम की हत्या कर दी. इस केस में आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा मिली हालांकि उन्होंने 14 साल जेल में बिताने के बाद रिहाई पाई. किसी तरह शवयात्रा वैशाली पहुंची. जहां छोटन शुक्ला के छोटे भाई मुन्ना शुक्ला ने चिता की राख और जनेऊ हाथ में लेकर प्रतिज्ञा की कि वह अपने भाइयों की हत्या का बदला जरूर लेंगे.
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